bal vikas or shiksha shastra pdf notes / बाल विकास को प्रभावित करने कारक

 

Bal vikas pdf  Test in Hindi for All Exams ,Ctet/mptet/uptet/Rtet

 

bal vikas or shiksha shastra pdf notes / बाल विकास को प्रभावित करने कारक
bal vikas or shiksha shastra pdf notes / बाल विकास को प्रभावित करने कारक
 
short notes Part-12  

 


नमस्कार दोस्तों , इस आर्टिकल में हमने “bal vikas or shiksha shastra pdf notes / बाल विकास को प्रभावित करने कारकके प्रश्नों का एक – एक करके संकलन किया है। साथ ही इस पीडीऍफ़ में हमने ” बाल विकास और शिक्षा शास्त्र ” के सभी topics को विषयवार cover किया है। इस नोट्स की विशेषता यह है , कि – इसमें आपको पढ़ने , समझने और याद करने में आसानी होगी। कियोकि इन नोट्स को आपके बालविकास एवं  शिक्षा – शास्त्र को समझने और याद करने की समस्याओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। 
बाल विकास की परिभाषाएं
बालक का विकास विभिन्न चरणों और प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है। जिसमे बालक शैशवावस्था ,बाल्यावस्था ,किशोरावस्था और प्रौढ़ावस्था आदि विभिन्न प्रकार के चरणों को से गुजरता हुआ अपनी विकास की प्रक्रिया को पूर्ण करता है। 
बालक के विकास के सम्बन्ध में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न – भिन्न परिभाषाएं दी है। जो इस प्रकार है। 
  •  फ्राईड के अनुसार – ” बालक को अपने जीवन काल में जो भी कुछ बनना है , वह प्रारंभिक 4 – 5 वर्षो में बन जाता है। 

 

  •  क्रो एंड क्रो के अनुसार – ” 20 वीं सदी बालक की सदी है। “

 

  •  हरलॉक के अनुसार – ” बाल विकास में बालक का रूप ,व्यवहार रूचि लक्ष्य आदि में होने वाले परिवर्तनों पर बल दिया जाता है। “
बाल विकास के चरण
 
बालक के विकास के विभिन्न चरण और कारक होते है।  जिससे बालक ” सीखता ” है।  वे सभी कारक जो कि किसी बालक के विकास को प्रभावित करते हो , बालक के सीखने के चरण के अंतरगर्त आते है। वे इस प्रकार है। 
 
  • बालक के माता – पिता

  • बालक का परिवार एवं रिश्तेदार 
  • बालक के घर के भीतर का वातावरण 
  • बालक के घर के बाहर का वातावरण 
  • बालक का सामाजिक वातावरण  
  • बालक की आर्थिक स्थति 
  • बालक का शारीरिक विकास 
  • बालक का मानसिक विकास 

 

 

आदि विभिन्न प्रकार के विकास संबंधी चरण बालक के विकास को प्रभावित करते है , अथवा उसके विकास में योगदान देते है। इस प्रकार बालक के विकास की गति को देखने के लिए बालक सभी पहलुओं को देखना अति आवश्यक होता है।

बालक के विकास को प्रभावित करने वाले पारिवारिक कारक

 

 

 

(i )  माता – पिता  – सर्वप्रथम  बालक के माता – पिता कैसे ये ” विकास ” की दृस्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु है।  कियोकि बालक के जैसे – माता – पिता होंगे। 
अर्थात –
→  जैसा उनका व्यवहार होगा।  ( घर के अन्दर और घर के बाहर )
→  जैसा उनका व्यवहार होगा – (उस बालक के प्रति )
→ जैसी उनकी भाषा होगी। 
→ जैसी उनकी शिक्षा होगी ।  
→ जैसा उनका नजरिया होगा ( स्वयं और दूसरो  के प्रति )
→ जैसी उनकी आर्थिक स्थति होगी। 
ये सभी बाते किसी भी ” बालक के व्यक्तित्व ” पर बहुत ही गहरा असर डालती है। अर्थात यदि हम कुछ अपवादों को छोड़ दे , तो बालक बहुत हद तक इसी के अनुसार अपना नजरिया तैयार करता है।    
(ii  ) बालक के घर का वातवरण – बालक के घर का वातावरण कैसा है , ये बालक के विकास में बहुत अधिक योगदान रखता है।  अर्थात बालक के घर का जैसा भी वातावरण होता है , बालक की नींव भी उसी तरह की पड़ती है। उसके संपूर्ण ” व्यक्तित्व ” पर इस बात का प्रभाव रहता है।  और इस बात का अंतर या उदाहरण हम अपने आस -पास आसानी से देख सकते है। 
(iii) घर के बाहर का वातावरण –  बालक के विकास में बालक को घर के अंदर अथवा घर के बाहर किस प्रकार का वातावरण मिल रहा है।  ये  भी अपने आप में महत्वपूर्ण होता है।  यदि बालक को घर में तो सही वातावरण मिल रहा है , किन्तु घर के बाहर सही वातावरण नहीं मिल रहा है , तो इस असर भी बालक के विकास पर पड़ेगा।  अर्थात इससे भी बालक  का विकास प्रभावित होगा।   

 

(iv )  अनुवांशिक कारण –  बालक के विकास में  ” अनुवांशिक कारण ” भी भूमिका रखता है।  बहुत से मनोविज्ञानिकों का मत है – कि  प्रतिभशाली माता – पिता की संतान भी प्रतिभाशाली होती है।  और सामान्य माता – पिता की संतान भी – सामान्य होती है।  परन्तु इस तथ्य पर ” मनोविज्ञानिकों ” में आपस में विरोधाभास है।  यानी कि – हमे बहुत से ऐसे उदहारण भी देखने को मिले है , जिसमे माता – पिता के सामान्य होते हुए भी संतान “प्रतिभशाली ” होती है।  वही दूसरी और ” प्रतिभशाली ” माता – पिता के होते हुए भी – संतान ” सामन्य ” अथवा उससे भी कम हो सकती है।  इस तथ्य में तो विरोधाभास है , परन्तु – इसमें एक बात हम यह देखते है , कि – बालक के विकास में – कुछ योगदान ” आनुवंशिक ” भी होता है। 
( 2 )  बाल – विकास एवं बाल – मनोविज्ञान के अंतरगर्त बालक के विकास के विभिन्न चरण या आयामो का अध्ययन किया जाता है।  ये वे चरण होते है , जिनसे किसी बालक का विकास प्रभावित होता है। अर्थात सभी बालको को इन विकास के इन चरणों से गुजरना होता है। बाल – विकास एवं बाल – मनोविज्ञान के अनुसार विकास के विभिन्न आयाम इस प्रकार है। 
(i ) बालक का  शारीरिक विकास होना । 
(ii ) बालक का मानसिक विकास होना। 
(iii ) बालक का भाषायी विकास होना। 
(iv ) बालक का सामाजिक विकास होना। 
(v ) बालक का “सांवेगिक ”  विकास होना। 
(vi )  बालक का मनोगत्यात्मक विकास का होना। 
(i ) बालक का शारीरिक विकास – बालक का शारीरिक विकास में हम शरीर के आंतरिक विकास और शरीर के बाहरी विकास दोनों को शामिल करते है। अर्थात बालक के शारीरिक विकास में शरीर में होने वाले “बाह्य – परिवर्तन ” और शरीर में होने वाले “आंतरिक – परिवर्तन ” दोनों को शामिल करते है। 
→  इसमें शरीर के बाहरी विकास या ” बाह्य परिवर्तन ”  के अंतरगर्त निम्नलिखित बातो का ध्यान रखते है। 
 
बाह्य –  विकास 
(i  ) बालक के शारीरिक  अनुपात में बढ़ोतरी होना।  इसके अंतरगर्त  बालक शरीर में बाहरी ओर  से होने वाली बढ़ोत्तरी को शामिल किया जाता है।  बालक के शरीर में होने वाले “बाह्य परिवर्तनो ” को हम आसानी से अनुभव कर सकते है।      – जैसे कि – बालक की लम्बाई का बढ़ना। 
 
(ii )  बालक के शारीरिक वृद्धि और विकास में उसके ” अनुवांशिकता ” का कारण भी बहुत    हद तक योगदान रखता है। 
 
(iii ) बालक के शरीर में होने वाले ” बाह्य परिवर्तनों ” को हम आसानी से देख सकते है।  
 
 
आंतरिक – विकास 
 (i )  बालक में होने वाले आंतरिक विकास या परिवर्तन को हम बाहरी  रूप से नहीं देख सकते है।  अर्थात बालक का ” आंतरिक विकास ” हमे बाहरी  रूप से तो नहीं दिखाई देता है , परन्तु  भीतरी तौर पर इनका विकास निरंतर बालक के शरीर में चलता रहता है। 
 
(2 ) बालक का मानसिक विकास –    बालक के जन्म लेने के बाद उसकी आयु  बढ़ने के साथ – साथ बालक की मानसिक योग्यताओं का विकास होता जाता है। अर्थात जैसे – जैसे बालक की आयु बढ़ती है ,बालक पहले से अधिक मानसिक – परिपक्वता प्राप्त करता है। 
 
  बालक के मानसिक विकास के अंतरगर्त निम्नलिखित बातो का ध्यान रखा जाता है। 
 
* बालक का कल्पना करना , स्मरण करना , विचार करना , निरिक्षण करना , समस्या समाधान करना , निर्णय लेना , आदि विभिन्न्न प्रकार की योग्यताओ को शामिल किया जाता है।  अर्थात इस बालक के ” मानसिक विकास ” में इन सभी प्रकार की योग्यता को शामिल करते है। 
(i )  बालक मानसिक रूप से कमजोर क्यों है ? इसके पीछे क्या कारण है ? 
(ii ) बालको को किस विधि – अथवा पठन  सामग्री  अथवा  –  पाठ्यक्रम द्वारा पढ़ाना उचित होगा।  यह निर्णय लेने में भी मदत मिलती है। 
(iii )  बालको के ” मानसिक विकास ” के अध्ययन से हमे – बालको के लिए – ” पाठ्य – पुस्तक ” किस प्रकार तैयार की जाए , इसमें मदत मिलती है।  अर्थात उस पाठ्य – पुस्तक का प्रारूप क्या हो , इसका निर्णय लेना।
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