Bal Vikas or Shiksha Shastra pdf notes in Hindi
Bal vikas pdf Test in Hindi for All Exams ,Ctet/mptet/uptet/Rtet
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प्रश्न 1 – निदानात्मक शिक्षण क्या है ?
उत्तर 1 – निदानात्मक शिक्षण ➢ निदानात्मक शिक्षण के अन्तर्गत किसी विषय के शिक्षण में आने वाली समस्याओं को पता करके उनको दूर करने का प्रयास किया जाता है ।
➧ निदानात्मक शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है ।
1 – किसी विषय वस्तु में अध्ययन और अध्यापन की दृस्टि सुधार करना।
2 – शिक्षण के सभी प्रकार की समस्याओं को ढूंढ़ना और उनका उपचार करना ।
3 – छात्र और छात्राओं की विषय के सम्बन्ध में विशिस्टताओं एवं कमजोरियों का पता लगाना ।
4 – विषय वस्तु को “बाल-केंद्रित ” बनाना ।
5 – मूल्यांकन पद्धति को और भी अधिक प्रभावशाली बनाना तथा उसमे समय – समय पर परिवर्तन करना ।
➧ निदानात्मक शिक्षण के 5 चरण इस प्रकार है ।
1 – सर्वप्रथम समस्याग्रस्त विद्यार्थियों की पहचान करना ।
2 – तत्पश्चात उस क्षेत्र विशेष को देखना जहां बालक द्वारा त्रुटि हो रही है।
3 – फिर उस समस्या को समझना चाहिए ।
4 – उसके बाद उस समस्या अथवा जटिलता को दूर करने के लिए शिक्षक को विचार करना चाहिए ।
5 – अंततः इन सभी चार चरणों की प्रक्रिया के पश्चात पांचवें चरण में समस्या का उपचार करना चाहिए ।
➧ उपचारत्मक शिक्षण – उपचारत्मक शिक्षण विधि की निम्नलिखित विशेषताए है ।
1 – उपचारात्मक शिक्षण विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है।
2 – इस विधि का प्रयोग – कमजोर तथा पिछड़े छात्रों के निदानात्मक मूल्यांकन के पश्चात उनकी कमजोरियों अथवा कमियों में सुधार के लिए प्रयोग किया जाता है ।
3 – निदानात्मक शिक्षण और उपचरात्मक शिक्षण आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए है , अर्थात एक के बिना दूसरा अधूरा है ।
4 – इस विधि में (उपचारात्मक शिक्षण ) में छात्र और छात्राओं को यह प्रेरणा दी जाती है , कि वे अपनी संपूर्ण क्षमताओं के अनुसार अधिक और अच्छा कार्य करें ।
➧ शिक्षण हेतु ” उपचारत्मक शिक्षण ” के सिद्धांत निम्नलिखित है I
1 – अध्यापक एवं विद्यार्थी के बीच निकट सम्बन्ध स्थापित हो ।
2 – एक शिक्षक को ” उपचारात्मक शिक्षण ” की सम्पूर्ण योजना तथा भूमिका स्पस्ट रूप से पहले ही बना लेना चाहिए ।
3 – उसके बाद उस योजना का कार्यान्वयन करना चाहिए ।
4 – उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया के दौरान बालको की आयु , रूचि , योग्यता , अनुभवों आदि को ध्यान में रखा जाना चाहिए , तत्पश्चात उपचारत्मक शिक्षण की प्रक्रिया को करना चाहिए ।
5 – बालको की विषय के प्रति रूचि बनी रहे उसके लिए उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए ।
➧ पिछड़े बालको के लिए उपचारत्मक शिक्षण के नियम निम्नलिखित है ।
1 – सर्वप्रथम कमजोर बालको को एक ही कक्षा में रखा जाना चाहिए ।
2 – पिछड़े बालको की कक्षा में विधार्धियो की संख्या 20 – 25 से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
3 – किसी भी विषय – वस्तु के उस क्षेत्र को देखना चाहिए , जिसमे बालक अधिक गलती करते है ।
4 – शिक्षक को शिक्षण के दौरान मॉडल तथा चार्ट का प्रयोग करना चाहिए।
5 – शिक्षक को छात्र तथा छात्राओं की आवश्यकता अनुसार कक्षा एवं कक्षा के बाहर व्यक्तिगत परामर्श अवश्य देना चाहिए ।
6 – शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों की गलतियों का सुधार उनके समक्ष / सामने ही करें । जिससे की वह बालक गलती को पुनः नहीं दोहराये ।
➧ प्रतिभाशाली बालको के लिए उपचारत्मक शिक्षण के नियम निम्नलिखित है।
1 – प्रतिभाशाली बालको को उपचारत्मक शिक्षण विशेष रूप से देना चाहिए
2 – प्रतिभाशाली बालको को सही और उचित मार्गदर्शन न मिलने से सामाजिक दृस्टि से गलत रास्तों पर जाने अथवा बाल अपराधी की सम्भवना अधिक बढ़ जाती है ।
3 – प्रतिभाशाली बालको को आधुनिक विज्ञान , गणित , इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी आदि सम्बंधित सभी विषयो का संपूर्ण ज्ञान व्यवस्थित ढंग से देना चाहिए ।
4 – प्रतिभाशाली बालको के शिक्षण में निम्नलिखित विधियो का प्रयोग करना चाहिए – जैसे कि – निगमन विधि, संश्लेषण विधि ,प्रयोगशाला विधि , ह्यूरिस्टिक एवं प्रोजेक्ट विधि आदि ।
5 – प्रतिभाशाली बालको के समक्ष कुछ समस्याओ और चुनोतियो को प्रस्तुत करना चाहिए ।
(i ) बालक के “सांस्कृतिक – कारको ” में बालक से सम्बंधित निम्नलिखित विशेषताओं को शामिल किया जाता है।