bal vikas pdf / bal vikas or shiksha shastra notes in Hindi
bal vikas pdf Test in Hindi for All Exams ,Ctet/mptet/uptet/Rtet
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नमस्कार दोस्तों , इस आर्टिकल में हमने ” bal vikas pdf / bal vikas or shiksha shastra notes in Hindi ” के प्रश्नों का एक – एक करके संकलन किया है। साथ ही इस पीडीऍफ़ में हमने ” बाल विकास और शिक्षा शास्त्र ” के सभी topics को विषयवार cover किया है। इस नोट्स की विशेषता यह है , कि – इसमें आपको पढ़ने , समझने और याद करने में आसानी होगी। कियोकि इन नोट्स को आपके बालविकास एवं शिक्षा – शास्त्र को समझने और याद करने की समस्याओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
Part-6
1- भाषा का प्रारंभिक रूप है ➨ रोना , बलबलाना ,हाव -भाव , संकेत
भाषा का वास्तविक रूप ➨ आकलन ,बोध शक्ति ,शब्द भंडार , वाकय निर्माण , शुद्ध उच्चारण आदि ∣
(i) पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जन्तुओ की अपनी अलग – अलग भाषा है І
(ii) अंग्रेजी , हिन्दी, भी सभी भाषा है І
(iii) भाषा अर्थहीन भी हो सकती है , जैसे की -संकेत भाव की भाषा І
(iv) एक गूंगे व्यक्ति की भी भाषा होती है,जिसे वह संकेत भाव से अपने शरीर के अंगो द्वारा प्रकट करता है І
(v) “बच्चा ” जब जनम लेता है ,और जब वह रोता है , तो वह उसकी प्रथम भाषा कही गयी है ।
(2) परिपक्वता सिद्धांत ➨ इस सिद्धांत अनुसार बोलने में सभी स्वर यन्त्र जैसे – जीभ ,गला, होंठ ,तालु ,दांत ,आदि जिम्मेदार कारक होते है
। अर्थात इनमे से यदि कोई भी अंग कमजोर होगा ,तो उस अंग की कमी से वाणी प्रभावित होती है । तथा सभी अंगो के “परिपक्व ” होने पर ही भाषा शुद्ध होती है ।
(3) अनुबंध का सिद्धांत➨ अनुबंध सिद्धांत से आशय है की किसी भाषा के साथ “सम्बन्ध ” स्थापित करना ।अर्थात जब हम किसी भाषा के साथ सम्बन्ध स्थापित कर लेते है , तो यह अनुबंध का सिद्धांत कहलाता है । जैसे की – ” बालको ” को किसी भी वस्तु के बारे में बताते हुए उस वस्तु को प्रत्यक्ष रूप से दिखाना ।
उदहारण के लिए –
(I) बालको को कलम बोलने के साथ ” कलम ” को दिखाया जाना
इस प्रकार इस तरह की क्रिया से उस वस्तु और बालक में एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है ।
जिससे हम ” अनुबंध ” सिद्धांत कहते है ।यह सिद्धांत प्राथमिक कक्षाओं के लिए अत्यधिक उपयोगी होता है ।
(4) वाणी ➤ वाणी और भाषा दोनों एक दूसरे से बिलकुल अलग -अलग है ।
(I) वाणी भाषा का ही एक रूप है ।
(ii) वाणी ” मनोक्रियात्मक कौशल ” है । अर्थात मानसिक रूप से किया जाने वाला कौशल І
(iii) बिना अर्थ और नियंत्रण के बोली गयी वाणी “तोता वाणी ” कहलाती है ।
(iv) वाणी केवल ” मनुष्यों ” द्वारा ही बोली जाती है ।
(v) वाणी वह होती है ,जिससे कोई व्यक्ति अथवा समाज समझ सके І
(vi) वाणी अर्थपूर्ण (जिसका अर्थ हो ) ही होती है , अर्थात बिना अर्थ के कोई भी वाणी नहीं हो सकती ।
कोई भी व्यक्ति किसी भी समाज में जब वह अपने विचारो का आदान – प्रदान करता है , तो वाणी के माध्यम से ही करता है І
(5) संवेगात्मक तनाव ➨ जिन बच्चो सवेगों का कठोरता से दमन किया जाता है , जैसे की – डाटना ,पीटना ,झिड़कना ,आदि – ऐसे बच्चो में भाषा का विकास क्रम देर से प्रारम्भ होता है ∣
(6) प्रशिक्षण विधि ➨ बच्चो को डाँटकर भाषा सीखने की अपेक्षाकृत स्वतत्र रूप से भाषा सीखने पर बल देना चाहिए ।
(7) व्यक्तित्व ➨ फुर्तीले ,उत्साही ,चुस्त , एवं बहिर्मुखी बालको का भाषा विकास ,शांत स्वभाव वाले बालको की अपक्षाकृत अधिक गति से होता है ।
(8) भाषा दोष के बालको पर प्रभाव ➨ जिन भी बालको में भाषा दोष उत्पन्न हो जाते है ,वे समाज से कतराने लगते है , उनके अंदर हीनता ,अकेले रहना , कम बोलना ,आदि प्रवत्ति पायी जाती है Ι इन बालको को ” पिछड़ा बालक ” कहते है Ι
(9) चिंतन ➨ चिंतन एक ज्ञान प्राप्त करने की “मानसिक प्रक्रिया ” है । इसके अतरगर्त – स्मृति ,कल्पना ,अनुमान आदि को शामिल किया जाता है І
(10) वंशानुक्रम एवं वातावरण – वंशानुक्रम का मूल ” कोष ” होता है। इस कोषों के द्वारा ही मनुष्य के शरीर का बनता है। कियोकि इन कोषों के केंद्र में “गुणसूत्र “पाए जाते है। इन गुणसूत्रों में मनुष्य के “अनुवांशिकता ” के जीन्स होते है। जो कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते है। और यह क्रम चलता रहता है। ये संपूर्ण प्रक्रिया ” वंशानुक्रम ” कहलाती है।
(11 ) शारीरिक दृस्टि से वंशानुक्रम – किसी भी बालक में वंशानुक्रम के तहत ” शारीरिक विकास ” को देखने से विभिन्न तरह तथ्यों का ज्ञान होता है।
जैसे कि –
(i ) बालक की ऊंचाई (hight ) क्या होगी
(ii ) बालक का रंग – रूप कैसा होगा ? जैसा कि अक्सर हम देखते है कि – जिन माता – पिता का रंग साफ़ (गोरा ) होता है , उन माता – पिता की संतान का भी रंग गोरा होता है। वही इसके विपरीत – जिन माता – पिता का रंग काला होता है , उन माता – पिता की संतानो का रंग भी अक्सर “काला ” देखने को मिलता है।
(iii ) बालक में शारीरिक वृद्धि किस प्रकार की होगी।
(iv ) बालक का विकास किस प्रकार और कैसे निर्धारित होगा।
अतः इस प्रकार हम कह सकते है , कि किसी भी बालक का वंशानुक्रम “शारीरिक दृस्टि ” उसके विकास एवं वृद्धि को प्रभावित करता है। वही दूसरी और इन सम्बन्ध में कुछ अपवाद भी देखने को मिलते है।
(12 ) बौद्धिक दृस्टि से वंशानुक्रम – किसी भी बालक में वंशानुक्रम के तहत ” बौद्धिक दृस्टि ” को देखने से विभिन्न तरह तथ्यों का ज्ञान होता है।
(i ) गोडार्ड के अनुसार – ” मंद बुद्धि के माता – पिता के संतानो (बच्चो ) की बुद्धि मंद होती है और तीव्र बुद्धि के माता – पिता के बच्चो की बुद्धि भी ” तीव्र ” ही होती है। “
→ हालांकि – इस पर बहुत से मनोवैज्ञानिकों के “विरोधावास ” है। साथ की ऐसे तथ्य निकलर सामने आये है , जिसमे इस नियम को गलत पाया गया है।
(ii ) बुद्धि को हम अधिगम अर्थात “सीखने की योग्यता” कहते हैं। जिसमे बालक के विभिन्न क्षेत्रों को देखा जाता है।
जैसे कि
(i ) बालक द्वारा निर्णय लेने की क्षमता कैसी है ? क्या वो त्वरित निर्णय लेने में सक्षम है या नहीं।
(ii ) बालक के सीखने की गति कैसी है ? अर्थात बालक के सीखने की गति – “तीव्र ” है – अथवा “मंद ” है। कियोकि यदि बालक के सीखने की गति “तीव्र ” होगी तो उस बालक का ” मानसिक
– विकास ” भी तीव्र गति से होगा। ठीक इसके विपरीत यदि बालक के सीखने की गति यदि – ” मंद ” है , तो उस बालक का मानसिक विकास भी “धीमी ” गति से होगा।
(iii ) ” मनोविज्ञानिकों ” ने – वंशानुक्रम से संबंधित विभिन्न तरह की परिभाएँ दी है। जिनमे से कुछ इस प्रकार है।
(i ) बी-एन -झा – के अनुसार – ” वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओ का पूर्ण योग है। “
(ii ) वुडवर्थ के अनुसार – ” वंशानुक्रम में उन सभी बातो को शामिल किया जाता है – जो कि बालक – में उसके जन्म के समय नहीं अपितु गर्भाधान के समय – 9 माह पूर्व मौजूद थी। “
(iii ) एच् – ए – पेटरसन -के अनुसार – ” बालक माता – पिता के माध्यम से अपने पूर्वजो की जिन विशेषताओं को प्राप्त करता है उसे – वंशानुक्रम – कहते है। “
(iv ) जेम्स ड्रेवर के अनुसार – ” शारीरिक तथा मानसिक विशेषताओं का माता – पिता से संतानो में हस्तांतरण होना ही वंशानुक्रम हैं। “
(v ) रूथ – बेनेडिक्ट के अनुसार – ” वंशानुक्रम माता – पिता से बच्चो को प्राप्त होने वाला एक गुण है। “