बाल विकास के सिद्धांत हिंदी पीडीएफ / bal vikas or shiksha shastra notes in Hindi
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PART-8
बाल विकास के सिद्धांत हिंदी पीडीएफ / bal vikas or shiksha shastra notes in Hindi
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नमस्कार दोस्तों , इस आर्टिकल में हमने ” बाल विकास के सिद्धांत हिंदी पीडीएफ / bal vikas or shiksha shastra notes in Hindi” के प्रश्नों का एक – एक करके संकलन किया है। साथ ही इस पीडीऍफ़ में हमने ” बाल विकास और शिक्षा शास्त्र ” के सभी topics को विषयवार cover किया है। इस नोट्स की विशेषता यह है , कि – इसमें आपको पढ़ने , समझने और याद करने में आसानी होगी। कियोकि इन नोट्स को आपके बालविकास एवं शिक्षा – शास्त्र को समझने और याद करने की समस्याओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
(1 ) हरलॉक के अनुसार➨ “भाषा में सम्प्रेषण के वे सभी साधन आते है। , जिसमे विचारो और भावों प्रतीकात्मक बना दिया जाता है । जिससे की अपने विचारों और भावों अर्थ पूर्ण ढंग से कहा जा सके। “
(2) स्किनर के अनुसार ➨ ” अनुबंध द्वारा भाषा विकास की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है “
(3) “चोमस्की के अनुसार ” ➨ ” बच्चे शब्दों की निश्चित संख्या से कुछ निश्चित नियमो अनुकरण करते हुए वाक्यों का निर्माण करना सीख जाते है । इन शब्दों से नए नए वाक्यों एवं शब्दों का निर्माण होता है
“इन वाक्यों का निर्माण बच्चे जिन नियमो के अंतरगर्त करते है , उन्हें “चोमस्की ” ने ” जेनेरेटिवे ग्रामर ” संज्ञा प्रदान की है ।
(3) स्मिथ , लॉवेल और मार्ककेले अनुसार ➨ ” जो बच्चे लम्बी अवधि तक बीमार होते है ,उनकी भाषा विकास की गति धीमी होती है ,और भाषा विकास कमजोर होता है ∣”अतः बच्चो का स्वास्थ्य जितना अच्छा होगा ,उनमे भाषा विकास की गति उतनी तीव्र होती है Ι”
बाल विकास के सिद्धांत हिंदी पीडीएफ / bal vikas or shiksha shastra notes in Hindi
(4) हरलॉक के अनुसार ➨ ” जिन बच्चो का बौद्धिक स्तर (iq) उच्च होता है , उनमे भाषा विकास अपेक्षाकृत कम बुद्धि वालों से अच्छा होता है। “
(5) स्पाइकर और इरविन के अनुसार ➨ ” बुद्धिलब्धि और भाषा सम्बन्धी योग्यता में घनिष्ट सम्बन्ध है। “
(7) गैसिल और जारशील्ड के अनुसार – ” उच्च वर्ग के शिशु (सामाजिक और आर्थिक स्थति में उच्च ) जल्दी बोलना सीख जाते है,अधिक बोलते है तथा इसका उच्चारण शुद्ध होता है। “
(8) आइंस्टीन , डेविस और स्क्रील्स मनोवैज्ञानिकों ने – ” अनाथ बच्चो पर अध्ययन किया और पाया की उन बच्चो में भाषागत विकास अपेक्षाकृत कम है , साथ ही उनका शब्दों का भण्डारण भी कम है Ι इसके साथ ही इन्होने यह भी देखा की ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ने वाले बच्चो की ” शाब्दिक क्षमता ” शहरी या अन्य जगह पढ़ने वाले बालको से अपेक्षाकृत कम होती है Ι “
(9) इरविन और चेन के अनुसार ➨ ” प्रथम वर्ष में बालक एवं बालिकाओ की भाषा में कोई अंतर नहीं होता है , लेकिन दूसरे वर्ष से बालिकाओ की क्षमता बालको से अधिक हो जाती है । “
(10) ” हरलॉक के अनुसार ➨ ” भाषा का प्रिशिक्षण देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए , की बच्चो की आवयश्यक परिपक्वता आ चुकी है अथवा नहीं ।
(11)_ आइज्रनेक और उनके साथियो के अनुसार ➨ “ कार्यात्मक परिभाषा के रूप चिंतन कालनिक जगत में व्यवस्था स्थापित करता है , यह व्यवस्था स्थापित करना वस्तुओ से सम्बंधित होता है ,तथा साथ ही साथ वस्तुओ के जगत प्रतीकात्मकता से भी सम्बंधित होता है ।वस्तुओ में सम्बन्धो की व्यवस्था तथा वस्तुओ में प्रतीकात्मक सम्बन्धो की व्यवस्था भी चिंतन है “
(12) कॉलिन्स और ड्रेवर अनुसार ➨ ” चिंतन को जीव शरीर के वातावरण के प्रति चैतन्य समायोजन कहा जाता है Ι इस रूप में विचार स्पस्टतः मानसिक स्तर पर हो सकते है ,जैसे की – प्रत्यक्षानुभव और प्रत्यानुव Ι “
(13) पियाजे के अनुसार ➨ ” लगभग 7 वर्ष की अवस्था तक बालक की प्रवत्ति ” आत्मकेंद्रित ” होती है ∣ अतः बालक अपने स्वयं के सम्बन्ध में ही चिंतन अधिक करता है ,उसकी इस अवस्था के चिंतन में तार्किकता का आभाव रहता है ∣
(14) बुडवर्थ (1954 ) ➨ बुडवर्थ ने दोनों प्रकार के चिंतन – कल्पनात्मक चिंतन और प्रत्यात्मक चिंतन को ” विचारात्मक चिंतन ” कहा है ।
(15) रेबर्न के अनुसार ➨ ” अनुकरण दूसरे व्यक्ति के बाह्य व्यवहार की नक़ल है “
(16) क्रो और क्रो के अनुसार➨ ” किसी बालक में चिंतन ककी योग्यता उसके सफल जीवन का मूल आधार है ∣ “
(6 ) टरमैन फिशर और याम्बा के अनुसार – “तीव्र बुद्धि के बालको का उच्चारण और शब्द भण्डार अधिक होता है। “
बाल विकास के सिद्धांत हिंदी पीडीएफ / bal vikas or shiksha shastra notes in Hindi
(17)स्त्रियों और पुरषो में भिन्नता की खोज – ” स्त्रियों और पुरषो में भिन्नता की खोज ” मेकनेमर और टर्मर थी “∣
मनोविज्ञान के प्रमुख सिद्धांत एवं प्रतिपादक
बुद्धि के सभी सिद्धांत
1 – रॉस के अनुसार – ” नवीन परिस्थितियों के साथ चेतन अनुकूलन करना ही बुद्धि है। “
2 – स्पीयरमैन – द्विकारक सिद्धांत के प्रतिपादक।
3 – टर्मन के अनुसार – ” बुद्धि अमूर्त विचारों को सोचने की योग्यता है। “
4 – बुडवर्थ के अनुसार – ” बुद्धि हमारे कार्य करने की विधि है। “
5 – बुद्धि बहुखण्ड सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया था ?
उत्तर – थार्नडाइक द्वारा।
6 – ” बुद्धि परीक्षण ” का जनक कौन है ?
उत्तर – बिने – साइमन
7- बिने के अनुसार – ” बुद्धि पहचानने तथा सुनने की शक्ति है। “
8 – बुद्धि के “त्रि – आयामी ” सिद्धांत के जनक कौन है ?
उत्तर – गिलफोर्ड।
9 – बुद्धि के ” प्रतिदर्शन सिद्धांत ” के प्रतिपादक कौन है ?
उत्तर – थॉमसन।
अन्य सभी सिद्धांत और प्रतिपादक
1 – ” विलियम मेक्डूगल ”
मूल प्रवत्तियों का सिद्धांत।
हार्मिक का सिद्धांत।
2 – ” विलियम जेम्स “
आधुनिक मनोविज्ञान के जनक
प्रकार्यवाद सम्प्रदाय के जनक
“आत्म सम्पत्यय ” की अवधारणा के जनक
3 – थार्नडाइक –
बहुखण्ड बुद्धि का सिद्धांत
मूर्त और अमूर्त बुद्धि के सिद्धांत
सामाजिक बुद्धि के सिद्धांत
प्रशिक्षण अंतरण का सिद्धांत
प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत
प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत
उद्दीपन – अनुक्रिया का सिद्धांत
संयोजनवाद का सिद्धांत
S-R थियोरी का सिद्धांत
सम्बन्धवाद का सिद्धांत
विकास के वातावरण – सम्बन्धी कारक
(1 ) भौतिक कारक – भौतिक कारक के अंतरगर्त बालक की ‘प्राकृतिक एवं भौगोलिक ” परिस्थितियाँ आती है। जिसके अंतगर्त –
→वे स्थान जहाँ सर्दी पड़ती है – वहाँ के लोग सुन्दर , गोरे , स्वस्थ और बुद्धिमान होते है। इन बालको के अंदर धैर्य भी अधिक होता हैं।
ठीक इसके विपरीत
→ वे स्थान जो गर्म रहते है – वहां के लोग – काले , चिड़चिड़े , आक्रामक होते है।
(2 ) सामाजिक कारक – सामाजिक कारक – बालक के – शारीरिक विकास , मानसिक विकास , भावनात्मक विकास , बौद्धिक विकास आदि को प्रभावित करते है। सामाजिक विकास के अंतरगर्त निम्नलिखित बातो को शामिल किया जाता है।
→ बालक के परिवार और समाज का रहन – सहन कैसा है ?
→ जिन परम्पराओं अथवा मान्यताओं को वे लोग मानते है , वे किस प्रकार की है ?
अतः इस प्रकार हम कह सकते है कि किसी भी बालक के जीवन में उनके – “सामाजिकता ” का प्रभाव बहुत अधिक पड़ता है। कियोकि यदि समाज अच्छा या बुरा जैसा भी होगा उसका सुपूर्ण प्रभाव उस बालक पर अवश्य पड़ेगा।
(3 ) आर्थिक स्थति – बालक की आर्थिक स्थति कैसी है , इसका संपूर्ण प्रभाव उसके विकास पर अवश्य पड़ता है। कियोकि कमजोर आर्थिक स्थति वाले बालको का विकास अलग ढग से होता है। वही मजबूत आर्थिक स्थति वाले बालको का विकास एक अलग ढग से होता हैं।
(i ) कमजोर आर्थिक स्थति वाले बालको में
निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती है।
→ कमजोर आर्थिक स्थति वाले बालको में अधिकतम शरीर का कम विकसित होना देखा जाता है। जिसका कारण यह होता है कि – वे “पौष्टिक भोजन ” नहीं कर पाते है।
→ कमजोर आर्थिक स्थति वाले बालक “हीन -भावना ” से ग्रसित हो जाते है। जिसका कारण है – वे अपने – आसपास के माहौल में दूसरे लोगो के पास जो है , उसे वे प्राप्त नहीं कर सकते है। जिस कारण उनकी “हीन भावना ” का स्तर बढ़ता चला जाता है।
→ बालक की कमजोर आर्थिक स्थति उसे दूसरे बालको की तरह – खेलने -, पसंद चीजों को लेना , मनपसंद भोजन करना आदि से रोकती है। इस कारण इन बालको में निराशा का भाव स्थायित्व रूप में विधमान हो जाता है।
नोट- किसी भी बालक की – बौद्धिक क्षमता कैसी होगी ? अथवा बालक का सामाजिक विकास कैसा होगा ? इसका भी अधिकतम निर्धारण – उस बालक की ” आर्थिक – स्थिति ” पर निर्भर होता है।