bal vikas or shiksha shastra pdf notes in Hindi/ भाषा विकास का क्रम, अवस्थाएं

bal vikas or shiksha shastra pdf notes in Hindi/ भाषा विकास का क्रम, अवस्थाएं

 

 

Bal vikas pdf  Test in Hindi for All Exams ,Ctet/mptet/uptet/Rtet

 

bal vikas or shiksha shastra pdf notes in Hindi/ भाषा विकास का क्रम, अवस्थाएं

भाषा विकास का क्रम, अवस्थाएं एवं प्रभावित करने वाले कारक

short notes Part-13   

 


नमस्कार दोस्तों , इस आर्टिकल में हमने “bal vikas or shiksha shastra pdf notes in Hindi/ भाषा विकास का क्रम, अवस्थाएं” के प्रश्नों का एक – एक करके संकलन किया है। साथ ही इस पीडीऍफ़ में हमने ” बाल विकास और शिक्षा शास्त्र ” के सभी topics को विषयवार cover किया है। इस नोट्स की विशेषता यह है , कि – इसमें आपको पढ़ने , समझने और याद करने में आसानी होगी। कियोकि इन नोट्स को आपके बालविकास एवं  शिक्षा – शास्त्र को समझने और याद करने की समस्याओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। 

बालकों में भाषा का विकास

 

 

बालकों में भाषायी विकास किस प्रकार से होगा,कितना होगा , ये कहना अथवा निश्चित करना ही अपने आप में विरोधाभास होगा। कियोकि भाषा के विकास के लिए बालक के विभिन्न कारक उत्तरदायी होते है। अतः सभी बालकों का भाषायी विकास एक तरह से नहीं होता है। 
किंतु फिर भी बाल विकास के अंतरगर्त सभी  बालकों के लिए भाषायी विकास को लेकर औसत शब्द सीमा निर्धारित की गयी है। ये निर्धारित सीमा बालक की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार निश्चित  की जाती है। 

बालकों में भाषा विकास के चरण

बालक के जन्म के बाद बालक का भाषायी विकास विभिन्न चरणों एवं अवस्थाओं से गुजरता है। जिसके तहत भिन्न – भिन्न बाल अवस्थाओं के अंतरगर्त बालक का विकास भी  भिन्न – भिन्न होता है और अवस्थाओं के बढ़ने पर  अधिक होता जाता है। अवस्थाओं से तात्पर्य – बालक के जीवन की विकास विभिन्न अवस्थाये जैसे कि –
  •  शैशावस्था 
  • बाल्यावस्था 
  • किशोरावस्था 
  • प्रौढ़ावस्था आदि से है। अतः इस सभी चरणों अथवा भाषायी विकास के क्रम से प्रत्येक बालक गुजरता है। 

भाषा विकास की अवस्थाएं

 

 

भाषा विकास की अवस्थाएं

भाषा विकास की अवस्थाएं

(i )  जन्म से 8 माह – बालक को जन्म से 8 माह तक के समयकाल में  किसी भी शब्द की जानकारी नहीं होती है। 

 

 

(ii ) बालक 9  माह से 12 के बीच के समयकाल में वह (तीन – चार) 3 -4  शब्दों को समझने लगता है। 
(iii )  बालक को लगभग  “डेड़ वर्ष ” के भीतर (10 -12 ) दस से बारह शब्दों की जानकारी हो जाती है। 
(iv ) बालक को ” दो – वर्ष ” (2 ) की आयु तक लगभग – 200 से अधिक शब्दों की जानकारी हो जाती है। 
(v ) बालक – “तीन वर्ष ” के अंदर लगभग – ” 1000 ” (एक – हजार ) शब्दों को समझने लगता है। 
(vi ) बालक – सोलह वर्ष की आयु तक लगभग – ” 1 लाख ” शब्दों को समझने लगता है। 

बच्चों में भाषा कौशल का विकास

(i) सांकेतिक अभिव्यक्ति – सांकेतिक अभिव्यक्ति वह ” अभिव्यक्ति ” होती है।

 

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
  जिसमे बालक अपनी बात को कहने के लिए किसी ” संकेत ” का प्रयोग करता है।  अर्थात जब बालक अपनी बात को किसी “संकेत ” द्वारा कहता है
, तो वह उस बालक की – “सांकेतिक अभिव्यक्ति ” कहलाती है।
जैसे कि  – उंगली के इसारे से यहाँ – वहां जाने के लिए कहना।
(ii) लिखित अभिव्यक्ति – लिखित अभिव्यक्ति वह अभिव्यक्ति होती है।
  जिसमे बालक अपनी बात को लिखकर प्रकट करता है।  लिखित अभियक्ति के लिए बालक को लिखने का ज्ञान होना आवश्यक होता है।
मौखिक अभिव्यक्ति – इसके अन्तर्गत बालक अपनी बात को बोलकर  अभिव्यक्त करता है।
 बालक की मौखिक अभिव्यक्ति से हम पता लगा सकते है, कि  उस बालक का ” भाषायी विकास ” किस स्तर पर हुआ है। एक बालक अपनी मौखिक अभिव्यक्ति के द्वारा ही अपने भाषायी ज्ञान से परिचित करा सकता है।

भाषा विकास का अध्यापन

 

(i ) तुतलाना / हकलाना – कुछ बालको में हम देखते है ,कि  –  तुतला कर बोलना और हकलाना भी एक समस्या होती है।
 जिसके विभिन्न  कारण  हो सकते है। बालको का “तुतलाकर ” बोलना एक तरह का वाणी दोष होता है।  अतः  शिक्षक को चाहिए कि ऐसे बालको को “स्पस्ट ” बोलने के लिए प्रेरित करे अथवा कोई अन्य उपचारात्मक शिक्षण प्रक्रिया पर बल दे।  परन्तु ये तभी संभव है जब कि – किसी शिक्षक को इस विषय में ज्ञान हो।
शिक्षक का  भाषायी विकास  – किसी भी शिक्षक को ” भाषा ” के विकास का पूर्ण ज्ञान होना अतिआवश्यक अथवा अनिवार्य होता है।
  कियोकि इसी के साथ ही एक  शिक्षक किसी बालक के समस्याओं का समाधान कर सकता है।  जैसा कि – हम जानते है कि बालको को भाषा से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, किंतु यदि किसी शिक्षक को बालक की इस भाषायी समस्या से सम्बंधित ज्ञान नहीं होगा , तो वह उन समस्यों को हल नहीं कर पायेगा।

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक

 

बालक की भाषा को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक होते है। इन सभी कारकों के अंतरगर्त आंतरिक अथवा बाह्य कारक दोनों को शामिल किया जाता है। जो कि निम्न प्रकार है।
  • पारिवारिक कारक
  • सामाजिक कारक
  • आर्थिक कारक
  • शारारिक करक
  • मानसिक कारक
आदि विभिन्न कारक बालक के भाषा के विकास को प्रभावित करने वाले कारक के अंतरगर्त आते है। अर्थात इन सभी कारको का प्रभाव बालक की भाषा पर होता है।

 

चॉमस्की  का  भाषा विकास सिद्धांत

 

नाओम  चॉमस्की –भाषा वैज्ञानिक ” नाओम चॉमस्की ” ने भाषा विज्ञान को बारीकी से समझाया है । इन्होने 20 वीं सदी में ” भाषा विज्ञान ” के अंतरगर्त सबसे अधिक योगदान दिया है। साथ ही साथ  इन्होंने ” जेनरेटिव ग्रामर ” के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। 
“चॉमस्की  के अनुसार ” ➨ ” बच्चे शब्दों की निश्चित संख्या से कुछ निश्चित नियमो अनुकरण करते हुए वाक्यों का निर्माण करना सीख जाते है । 
इन शब्दों से नए नए वाक्यों एवं शब्दों का निर्माण होता है। 
“इन वाक्यों का निर्माण बच्चे जिन नियमो के अंतरगर्त करते है , उन्हें “चॉमस्की  ” ने ” जेनेरेटिवे ग्रामर ” संज्ञा प्रदान की है ।